चंडीगढ़ । देव समाज मुख्यालय, सेक्टर 36-बी चंडीगढ़ में तीन दिवसीय सत्य धर्म बोध उत्सव का समापन हुआ। उत्सव के दौरान आयोजित विभिन्न सत्रों में ऑडियंस को जीवन में सदाचार, सत्य और ईमानदारी के सिद्धांतों का पालन करने के महत्व के बारे में बताया गया ताकि समाज का संपूर्ण उत्थान और विकास हो सके ।
देव समाज के सचिव निर्मल सिंह ढिल्लों ने कहा कि “देव समाज के संस्थापक भगवान देवात्मा की विरासत को जीवित रखने के लिए सत्य धर्म बोध उत्सव आयोजित किया गया। उत्सव में लोगों को नैतिक जीवन जीने के लिए प्रेरित करने के उद्देश्य से विशेषज्ञों द्वारा प्रवचन दिए गए।
महोत्सव का मुख्य आकर्षण देव समाज मैनेजिंग काउंसिल की सदस्य और देव समाज कॉलेज मैनेजिंग कमेटी, चंडीगढ़ की सचिव एवं प्रोफेसर (डॉ.) एग्नेस ढिल्लों का सत्र था। ‘स्वस्तित्व संबंध आदेशों का पाठ और व्याख्या’ शीर्षक से अपने प्रवचन में उन्होंने भौतिकवादी इच्छाओं को त्यागने और मानवतावादी जीवन जीने के महत्व पर प्रकाश डाला। उन्होंने जोर दिया कि “हम सभी को एक वैज्ञानिक स्वभाव विकसित करने की आवश्यकता है जो हमें समाज को सभी कुरीतियों से ऊपर उठाने में मदद करेगा। उन्होंने लालच, भ्रष्टाचार, बुरे विचारों आदि से रहित एक सादा जीवन जीने के महत्व को सिखाने के लिए रोजमर्रा की जिंदगी से कई उदाहरण दिए। उन्होंने नशा मुक्त समाज, महिला शिक्षा और जाति और पंथ के आधार पर भेदभाव को दूर करने पर ध्यान केंद्रित करते हुए सभी को संदेश दिया कि इन लक्ष्यों को प्राप्त करने के लिए प्रयास करें। उत्सव की शुरुआत प्रार्थना और भजनों से हुई, जिसके बाद प्रोफेशन के तौर पर वकालत करने वाले एडवोकेट जगदीश चंद्र भारद्वाज ने ‘प्रवेश सभा’ का संबोधन किया। उन्होंने देव समाज द्वारा प्रचारित ‘वैज्ञानिक सोच’ पर प्रकाश डाला और नैतिक जीवन जीने के महत्व को समझाया।
एक अन्य महत्वपूर्ण संबोधन डॉ. मनोज मदान का था जिसमें उन्होंने ‘सात्विक जीवन जीने की कला’ पर बात की। अपने प्रवचन के माध्यम से उन्होंने श्रोताओं को सात्विक जीवन जीने से मिलने वाली खुशियों से अवगत कराया। उन्होंने भगवान देव आत्मा के जीवन से जुड़ी घटनाओं को सुनाकर लोगों को अच्छे कर्मों के लाभों के बारे में जागरूक किया। उन्होंने स्वार्थी इच्छाओं और सांसारिक लालच से मुक्त जीवन जीने का तरीका भी बताया। अंतिम दिन रामविलास पांडे ने ‘आत्मबोध की आवश्यकता’ पर बात की और इसके बाद जगदीश राय गाबा द्वारा संचालित ‘भाव प्रकाश’ में श्रोताओं ने अपने जीवन के अनुभवों के आधार पर अपनी भावनाओं को व्यक्त किया।