चंडीगढ़ । भारत सरकार द्वारा आईडीबीआई बैंक को निजी हाथों में सौंपने का फैसला न केवल बैंक के डिपोजिटर्स को बदहाली की करार पर लायेगा बल्कि समाज के अन्य वर्ग को भी प्रभावित करेगा और स्वयं बैंक के कर्मचारियों के साथ अन्याय करेगा। यह पक्ष आल इंडिया इंडियन डिवलपमेंट बैंक आफ इडिया बैंक आफिसर्स ऐसोसियेशन के महासचिव विठ्ठल कोटेश्वर राव ने होटल पार्कव्यू में अयोजित आईडीबीआई बैंक अधिकारियों के एक स्थानीय अधिवेशन को संबोधित करते हुये रखा। 1964 में स्थापित आईडीबीआई वर्ष 1976 में आरबीआई द्वारा केन्द्र सरकार को ट्रांसफर कर दिया गया था। बैंक 40 वर्षों तक एक डिवलपमेंट फाईनैंश्यिन इंस्टीच्यूशन के रुप में कार्य करता रहा जिसे एक वाणिज्यिक बैंक में बदल दिया गया। परन्तु सितंबर 2015 से यूनाईटेड फोरम ऑफ आईडीबीआई ऑफिसर्स एंड इम्पलोईस बैंक को निजी हाथों को बेचे जाने का विरोध कर रहा है । फोरम ने अपने देशव्यापी अभियान के अंतर्गत चलाया है जिससे की भारत सरकार और एलआईसी द्वारा बैंक के बेचे जाने पर बैंक ग्राहकों और आम जनता को पेश आने वाली समस्याओं से अवगत कराया जाये।
विठ्ठल ने शंका जताई कि समाज के अन्य वर्ग इस कदम से प्रभावित हो सकते हैं विशेषकर कृषि समाज। मुद्रा,पीएमएसवनिधि,स्टैंड अप इंडिया का छोटे व्यवसाय ग्राहकों को अनसेक्योर्ड लोन के रूप में लाभ नहीं उठा सकते हैं। वहीं दूसरी ओर बैंक की मेट्रो और शहरी शाखाओं ने मार्च 2019 से किसानों को ब्याज सबवेंशन के साथ केसीसी लोन देना बंद कर दिया है। यदि बैंक का निजीकरण हो जाता है तो अर्ध शहरी और ग्रामीण शाखाओं के किसान भी प्रभावित होंगें।