
चंडीगढ़ । ब्रेन स्ट्रोक लंबी अवधि में दिव्यांगता और यहां तक कि मृत्यु का एक प्रमुख कारण है। यह जानलेवा मेडिकल स्थिति ब्रेन सेल्स (मस्तिष्क कोशिकाओं) को अपरिवर्तनीय नुक्सान पहुंचाती है। इसके साथ ही ये “गोल्डन ऑवर” के महत्व को भी सामने लाता है, जिसका अर्थ है कि स्ट्रोक होने के बाद के पहले 60 मिनट जान बचाने के लिए सबसे महत्वपूर्ण होते हैं।इलाज के लिए महत्वपूर्ण समय बचाने के लिए, फोर्टिस हॉस्पिटल मोहाली ने ‘डायरेक्ट टू कैथ लैब स्ट्रोक ट्रीटमेंट’ प्रोसेस को शुरू किया है, जिसमें रोगी को रेडियोलॉजिकल स्कैन के बजाय सीधे फ्लैट पैनल सीटी क्षमता वाली बाइप्लेन न्यूरो कैथलैब में ले जाया जाता है – यह एक स्पेशलाइज्ड मेडिकल सुविधा है जो सबसे एडवांस्ड इमेजिंग तकनीक से लैस है जो न्यूरोवैस्कुलर स्थितियों के डायग्नोसिस और ट्रीटमेंट के लिए हाई-रिज़ॉल्यूशन सटीकता प्रदान करती है। यह इंस्टेंट मेडिकल इंटरवेंशन मस्तिष्क कोशिकाओं को बचाने और लॉन्गटर्म नुक्सान को कम करने में मदद करता है। प्रेस कॉन्फ्रेंस के दौरान मीडिया को संबोधित करते हुए, डॉ. विवेक गुप्ता, एडीशनल डायरेक्टर, इंटरवेंशनल न्यूरोरेडियोलॉजी और डायरेक्टर, बाइप्लेन न्यूरो कैथलैब ने कहा कि “एक मिनट का स्ट्रोक या रक्त की सप्लाई में कमी लगभग 20 लाख ब्रेन सेल्स को प्रभावित करती है। हालांकि, फोर्टिस हॉस्पिटल, मोहाली में बाइप्लेन न्यूरो कैथलैब जैसी उभरती हुई एडवांस्ड हेल्थकेयर टेक्नोलॉजीज और इसके एडवांस्ड सॉफ्टवेयर्स ने कई स्ट्रोक रोगियों को नई जिंदगी देने में मदद की है।डॉ. गुप्ता ने बताया कि कैसे ‘डायरेक्ट टू कैथ लैब स्ट्रोक ट्रीटमेंट’ ने एक 46 वर्षीय महिला की जान बचाने में मदद की, जिसे शरीर के दाहिने आधे हिस्से में लकवा के साथ फोर्टिस हॉस्पिटल, मोहाली लाया गया था। “बाइप्लेन न्यूरो कैथलैब एक स्पेशलाइज्ड मेडिकल सुविधा है जो सबसे एडवांस्ड इमेजिंग तकनीक से लैस है जो न्यूरोवैस्कुलर स्थितियों के डायोग्नोसिस और उपचार के लिए हाई-रिज़ॉल्यूशन प्रिसीजन प्रदान करती है। इसमें दो एक्स-रे सिस्टम हैं, जो दो अलग-अलग कोणों से एक साथ इमेजिंग की क्षमता देते हैं, जिससे मस्तिष्क और रीढ़ की हड्डी के डिटेल्ड 3डी विज़ुअलाइज़ेशन मिलते हैं। इसके अलावा, अब इस सिस्टम से कोन-बीम सीटी तकनीक का उपयोग करके सीटी स्कैन और सीटी एंजियोग्राफी करना संभव है। रोगी का इलाज मैकेनिकल थ्रोम्बेक्टोमी के माध्यम से किया गया, जो एक मिनिमल-इनवेसिव प्रोसीजर है जिसमें क्लॉट यानि थक्का हटाने के लिए ब्रेन आर्टिरी यानि मस्तिष्क की धमनी में कैथेटर डालना शामिल है। इससे रक्त प्रवाह बहाल हो सका और रोगी की सर्जरी के बाद की स्थिति में सुधार हुआ और प्रक्रिया के चार दिन बाद उसे छुट्टी दे दी गई। एक अन्य मामले में, एक 55 वर्षीय व्यक्ति को बाएं हाथ के पक्षाघात (पैरालाइसिस) के साथ फोर्टिस हॉस्पिटल मोहाली लाया गया। उन्हें बाइप्लेन न्यूरो कैथलैब ले जाया गया, जहां कैरोटिड आर्टिरी, एक ब्लड वेसल, जो मस्तिष्क को रक्त की आपूर्ति करती है, की इमरजेंसी स्टेंटिंग की गई। मरीज़ की हालत में सुधार हुआ और पांचवें दिन उसे छुट्टी दे दी गई।इस एडवांस्ड सॉफ़्टवेयर ने कैसे तीव्र स्ट्रोक के मरीज़ों को इमरजेंसी डिपार्टमेंट से सीधे बाइप्लेन न्यूरो कैथलैब भेजकर उनका इलाज संभव बनाया, पर ज़ोर देते हुए डॉ. गुप्ता ने कहा कि “नई तकनीक एन्यूरिज़्म और स्ट्रोक जैसी न्यूरो संबंधी स्थितियों के लिए मिनिमल इनवेसिव प्रोसीजर्स को संभव बनाती है। इससे महत्वपूर्ण 40-90 मिनट की बचत होती है और तेजी से मेडिकल मदद संभव होती है।”

