Saturday, November 8, 2025
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प्राकृतिक और वैज्ञानिक संतुलन से ही टिकेगी गेहूं की उत्पादकता – विशेषज्ञों ने दी सलाह

हयात रीजेंसी, चंडीगढ़ में दो दिवसीय ‘व्हीट इन ट्रांसफॉर्मेशन’ राष्ट्रीय सेमिनार का आगाज़

चंडीगढ़ । गेहूं उत्पादकता और गुणवत्ता  के बदलते परिदृश्य पर केंद्रित “व्हीट इन ट्रांसफॉर्मेशन” नामक दो दिवसीय राष्ट्रीय सेमिनार का शुभारंभ शुक्रवार को होटल हयात रीजेंसी, चंडीगढ़ में हुआ। यह आयोजन व्हीट प्रोडक्ट्स प्रमोशन सोसायटी (डब्ल्यूपीपीएस) और रोलर फ्लोर मिलर्स एसोसिएशन ऑफ पंजाब (आरएफएमएपी) द्वारा आयोजित किया जा रहा है। सेमिनार में देशभर से नीति निर्धारकों, शोधकर्ताओं, फ्लोर मिलर्स, प्रोसेसर्स और किसानों समेत गेहूं उद्योग से जुड़े विभिन्न हितधारक हिस्सा ले रहे हैं।सेमिनार से पहले आयोजित प्रेस कॉन्फ्रेंस को डब्ल्यूपीपीएस के चेयरमैन अजय गोयल और आरएफएमएपी  के चेयरमैन धर्मेंद्र सिंह गिल ने संबोधित किया। दोनों ने बदलते जलवायु परिस्थितियों और उपभोक्ता धारणा के बीच गेहूं की लम्बी अवधि तक  स्थिरता सुनिश्चित करने के लिए सामूहिक प्रयासों की आवश्यकता पर जोर दिया।अजय गोयल ने कहा कि गेहूं हमारी सभ्यता का हिस्सा हजारों सालों से रहा है और करोड़ों लोगों का मुख्य भोजन है। दुर्भाग्य से आजकल सोशल मीडिया पर गेहूं को लेकर नकारात्मक प्रचार किया जा रहा है, जिसे तथ्यों और वैज्ञानिक जानकारी से दूर करना होगा। उन्होंने कहा कि सेमिनार का विषय “व्हीट इन ट्रांसफॉर्मेशन” जलवायु, गुणवत्ता और उपभोग,  इन तीन अहम पहलुओं पर केंद्रित है।गोयल ने कहा कि उपभोक्ताओं तक सुरक्षित और पौष्टिक गेहूं उत्पाद पहुंचे, इसके लिए गुणवत्ता मानकों का पालन अनिवार्य है। उन्होंने कहा कि गेहूं की गुणवत्ता बनाए रखना बेहद जरूरी है। शेल्फ लाइफ और फूड सेफ्टी को लेकर स्पष्ट मानक और निगरानी व्यवस्था होनी चाहिए।उन्होंने यह भी कहा कि भारत की खाद्य सुरक्षा के लिए वैज्ञानिक नवाचार की अहम भूमिका है। सत्तर के दशक की हरित क्रांति ने भारत की कृषि में क्रांतिकारी बदलाव लाया, लेकिन अब जरूरत है कि हम वैज्ञानिक इंजीनियरिंग के माध्यम से नई ऊंचाइयों पर जाएं। जैविक गेहूं महत्वपूर्ण है, लेकिन केवल प्राकृतिक उत्पादन पर निर्भर रहना पर्याप्त नहीं। भले ही गेहूं में जेनेटिक मॉडिफिकेशन की अनुमति नहीं है, पर अन्य  साइंटिफिक इनोवेशन को प्रोत्साहित करना चाहिए ताकि उत्पादकता और लचीलापन बढ़ सके।”उन्होंने चेतावनी दी कि यदि पूरी तरह प्रकृति पर निर्भरता बढ़ गई, तो खाद्य सुरक्षा खतरे में पड़ सकती है।  उन्होंने कहा कि अगर हम केवल प्रकृति पर निर्भर हो गए तो उत्पादन घट सकता है और कीमतें आम उपभोक्ता की पहुंच से बाहर चली जाएंगी। इसलिए, सस्टेनेबिलिटी, प्रोडक्टिविटी और अफोर्डेबिलिटी इन तीनों के बीच संतुलन जरूरी है।धर्मेंद्र सिंह गिल, चेयरमैन, रोलर फ्लोर मिलर्स एसोसिएशन ऑफ पंजाब, ने पंजाब में हाल ही में आई बाढ़ से जुड़ी स्थितियों पर प्रकाश डाला। उन्होंने कहा कि हालांकि ब्यास नदी के आसपास के कुछ क्षेत्र बाढ़ से प्रभावित हुए हैं, लेकिन इससे भूमि में उपजाऊ गाद (सिल्ट) जम गई है जो भविष्य में उत्पादन के लिए लाभदायक सिद्ध हो सकती है।उन्होंने कहा  कि बाढ़ से प्रभावित क्षेत्रों में शुरू में नुकसान जरूर हुआ, लेकिन मिट्टी में पोषक तत्वों की मात्रा बढ़ गई है, जिससे आगामी फसल में उत्पादकता बेहतर होने की उम्मीद है।दो दिन तक चलेगी विशेषज्ञों की गहन चर्चाइस दो दिवसीय सेमिनार में कृषि, खाद्य प्रौद्योगिकी और पोषण क्षेत्र के विशेषज्ञ विभिन्न विषयों पर चर्चा करेंगे। इनमें  गेहूं की जलवायु सहनशीलता, फोर्टिफिकेशन और गुणवत्ता मानक, उपभोक्ता जागरूकता और मिलिंग टेक्नोलॉजी में प्रगति शामिल हैं ।

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