चंडीगढ़ (युद्धवीर सिंह)। हमें जीते जी मात-पिता की सेवा को अपना प्रथम कर्तव्य समझना चाहिए जिसका सुखद फल हमें पितृ श्राद्धों में मिलता है। यह बात पितृ श्राद्धों के अवसर पर गौ भक्ति जनकल्याण सेवा समिति, चंडीगढ़ द्वारा सेक्टर 37 स्थित श्री सनातन धर्म मंदिर धर्मशाला में आयोजित साप्ताहिक श्रीमद्भागवत कथा-पितृ मोक्ष महायज्ञ के दौरान कथा व्यास सुरेश शास्त्री ने श्रद्धालओं से कही। कथा व्यास सुरेश शास्त्री ने श्रद्धालुओं को बताया कि शास्त्रों में तीन ऋण बताए गए हैं जिनमें देव ऋण, ऋषि ऋण, पितृ ऋण। इनमें से पितृ ऋण श्राद्ध कर्म करने से उतारा जा सकता है, जबकि अन्य दो ऋणों को विधि-विधान से पूजा कर उतारा जा सकता है। उन्होंने बताया कि श्रीमद्भागवत कथा पाप नाशनी है इसके श्रवण से हमारे सभी पापों का नाश होता है । यह एक कल्प वृक्ष की भांति समस्त कामनाओं को पूरा करती है। यह संस्कारों की जननी है जो हमें अन्य विद्याओं से प्राप्त नही हो सकती। श्रीमद्भागवत कथा का श्रवण श्राद्धों में करने से हमारे पितृों का उद्धार होता है क्योंकि श्राद्ध पक्ष पितृों के लिए विशेष दिन शास्त्रों में बताए गए हैं। कथा व्यास ने श्रीमद्भागवत कथा के दूसरे दिन उपस्थित श्रद्धालुओं को सत्य को धारण की कथा का श्रवण करवाते हुए बताया कि भगवान श्रीकृष्ण जो स्वयं सत्य स्वरूप हैं वह महाभारत में सत्य रूपी पांडवों के साथ खडे़ रहें जिसमें उन्होंने एक सूत्र दिया सत्यम परम् धीमहि। इस अवसर पर भगवान के मधुर भजन कथा व्यास ने सुनाए, जिसे सुन श्रद्धालु मंत्रमुग्ध हो गए। सभी ने कथा के दौरान भगवान के जयकारे लगाए, जिससे पंडाल गूंजमयी हो गया। कथा के उपरांत श्रीमद्भागवत महापुराण की सामुहिक आरती की गई।