Wednesday, November 29, 2023
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सरलता व सहजता की प्रतिमूर्ति है गाय माता

यूनान मिस्र रोम सब मिट गए जहां से, कुछ बात है कि हस्ती मिटती नहीं हमारी।

दुष्यंत शकुंतला के पुत्र भरत ने बचपन में शेरों के दांत गिनकर यह दिखा दिया था कि भारत वीरता में अग्रगण्य है। वीर होने के साथ-साथ दया का भाव सच्चे मनुवाद की परिभाषा है। पूर्व दिशा से उगता हुआ सूरज सबसे पहले किरणें इसी धरती को देता है। और ईश्वर भी अवतार हमेशा इसी धरती पर लेता है। न जाने कितने आक्रांता आए- मोहम्मद गोरी, गजनवी, तुगलक चंगेज, खान जैसे दरिंदों ने एक के बाद एक न जाने कितनी बार भारत को लूटा। फिर भी भारत अडिग रहा। इसका रहस्य है भारत की संस्कृति। सनातनी संस्कृति में संस्कृत भाषा व प्रकृति के जड़-चेतन से प्रेम की भावना इसके पुरातन सनातन होने की द्योतक है। इसी जीवन शैली को धर्म की संज्ञा दी गई है। पेड़ों की पूजा, पशु-पहाड़-पत्थर, धरती तक की पूजा तो प्राणियों से प्रेम स्वाभाविक ही है। गाय को मां सा सम्मान दिया गया। भगवान राम के पूर्वज राजा दिलीप ने गाएं नंदिनी की रक्षा को स्वयं शेर का आहार बनना स्वीकार किया। पर दुख का विषय है आज धर्म पर पाखंड और राजनीति करने वाले कुछ लोग चीखकर तो कहते हैं “भारत माता की जय, गौ माता की जय”, पर जरा घृणित दृश्य देखिए हमारी गाय माता कुड़ों के ढेर में खाना तलाश रही हैं। सैकड़ों गायों की मरने की वजह उनके पेट में पॉलिथीन का पाया जाना है। चाहे दूध देना बंद कर दिया हो, पोषण भार लगता हो, पर कोई अपनी माता को भला यूंही कूड़ा खाने के लिए तो नहीं छोड़ता। अधिकार मांगने तो हर कोई प्रदर्शन करता है। यह निरीह प्राणी तो प्रदर्शन भी नहीं कर सकता। गाय तो आरक्षण भी नहीं मानती। बड़ी-बड़ी गौशालाओं को चलाकर धर्म के अधिष्ठाता बने धार्मिक संस्थाओं व संस्थानों से दर-दर भटकती एक गाय आखिर क्या मांगती हैं? सिर्फ शब्दों में जयकारा लगाकर मंदिरों की आरतियां पूरी हो जाती होंगी, पर बेजुबान यह गाय सिर्फ भूख और प्यास बुझाने को आज कूड़े के ढेर पर मिलकर बैठक करते हैं। इनकी मीटिंग का मकसद कुछ और नहीं होता। एक दूसरे से यही पूछती होंगी, आज खाना मिला क्या? किसी गाय का बछड़ा कहता होगा- मां, झूठा ही सही, सड़ा-गला ही सही, पेट भरा तो नहीं, पर भला हो उन लोगों का जिन्होंने कूड़े में खाना फ़ैका। गाय के बछड़े को खाना मिला तो गाय ने भी दिल से कहा होगा- भगवान करे उनके बच्चे जिए हजारों साल, जिन्होंने कूड़े में खाना फेंक मेरे बच्चे को खाना दिया। भगवान करे उनके बच्चे कभी भूखे ना रहे। ए.सी. में बैठकर सरकार चलाने वाले अफसरों ने कभी सोचा ना होगा की आज गाय भी बैठकों में अजेंडा डिस्कस करती होंगी, पर आपस में यह नहीं कहती- कि अच्छे दिन आने वाले हैं। आज धर्म भी शर्माता होगा। सृष्टि के रचयिता ने कलयुग के बुरे प्रभाव को अगर अनुभव किया होता तो शायद गाय को माता की संज्ञा कभी ना देता। धिक्कार है उस जनमानस को भी, जो कुत्तों को बच्चों सा प्यार कर घर में पालता है और माँ सा सम्मान पाने की हकदार गाय को झूठा और गंदा भोजन खिलाने पर शर्म भी महसूस नहीं करता। हमेशा अधिकार की बात करने वालों की कुछ जिम्मेदारी भी तो होती होगी, आखिर कब तक हम हर समस्या के लिए सरकारों को दोषी ठहराते रहेंगे। दोष जनता का भी कम नहीं, जरा सोच कर देखिए।
बदलाव सरकार बदलने से नहीं, व्यवहार बदलने से आएगा। जैसा आज आप दुनिया को दोगे, वैसा कल दुनिया आपके बच्चों को देगी। प्रकृति का यही नियम है। कर्म के विधान से तो भगवान भी बंधे हैं, फिर हम कैसे बच पाएंगें।

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