करनाल (अरविन्द शर्मा)। भारत में औसतन साठ साल की आयु तक पहुंचते-पहुंचते पांच से दस प्रतिशत लोगों में हृदय का वाल्व सिकुडऩे की समस्या सामने आ रही है। यह कोई बीमारी नहीं बल्कि उम्र के कारण होने वाली समस्या है। इसके उपचार के लिए अब चीर-फाड़ करके वाल्व बदलने की बजाए ट्रांसकैथेटर एओर्टिक वाल्व रिप्लेसमेंट (टीएवीआर) और माइट्रल वाल्व क्लिपिंग जैसी नई वाल्व रिप्लेसमेंट प्रक्रिया बेहद कारगर सिद्ध हो रही है। यह जानकारी मेदांता अस्पताल गुरुग्राम में इंटरवेंशनल कार्डियोलॉजी विभाग के चेयरमैन डॉ.रजनीश कपूर ने शनिवार को करनाल में आयोजित जागरूकता कार्यक्रम के दौरान पत्रकारों से बातचीत में दी। कपूर ने बताया कि हृदयघात के बाद हृदय वाल्व रोग हृदय रोग से होने वाली मृत्यु का तीसरा सबसे बड़ा कारण है। विश्व स्वास्थ्य संगठन के अनुसार सीवीडी दुनिया भर में मृत्यु का प्रमुख कारण है, जो सालाना 17.9 मिलियन लोगों की जान लेता है। बढ़ती उम्र के परिणामस्वरूप वाल्वुलर हृदय रोग (वीएचडी) का प्रचलन दुनिया भर में बढ़ रहा है।
साठ की उम्र में पांच से दस प्रतिशत लोगों का सिकुड़ रहा है वाल्व
रुमेटिक हृदय रोग वाल्वुलर हृदय रोग का सबसे आम रूप है, जो लगभग 41 मिलियन लोगों को प्रभावित करता है,इसके बाद कैल्सीफिक एओर्टिक स्टेनोसिस और डिजनरेटिव माइट्रल वाल्व रोग, क्रमश: 9 और 24 मिलियन लोगों को प्रभावित करता है। उन्होंने कहा कि हम हर महीने 15 से 20 ट्रांसकैथेटर एओर्टिक वाल्व रिप्लेसमेंट कर रहे हैं,जो भारत में सबसे अधिक है। इनमें तीन से चार रोगी हरियाणा तो चार से पांच रोगी पंजाब से आ रहे हैं।
नॉन-सर्जिकल इंटरवेंशंस से मृत्यु दर में 21 प्रतिशत की कमी आई
उन्होंने कहा कि आंकड़ों से स्पष्ट है कि जहां उपचार में नॉन-सर्जिकल इंटरवेंशंस शुरू होने और बेहतर रोग जांच के बाद हृदय वाल्व रोग से आयु-समायोजित मृत्यु दर 21 प्रतिशत (8.4 से 6.6) कम हो गई। एओर्टिक स्टेनोसिस अगर अनुपचारित छोड़ दिया जाता है तो तत्काल कार्डियक डेथ से मृत्यु हो सकती है। एओर्टिक स्टेनोसिस के लगभग 30 प्रतिशत रोगी सर्जरी के लिए अयोग्य हैं और मृत्यु की संभावनाएं बनी रहती हैं। उन्होंने बताया कि भारत में वाल्व सिकुडऩे की समस्या 70 की उम्र में 10 से 15 प्रतिशत तथा 75 की उम्र में 20 से 25 प्रतिशत लोगों में देखी जा रही है। एक बार टीएवीआर तकनीक से वाल्व बदलने के बाद रोगी दस से 12 साल सामान्य जीवन व्यतीत कर सकता है