Sunday, September 8, 2024
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श्री महावीर मुनि मंदिर में ब्रह्मलीन मुनि गौरवानंद गिरि जी महाराज की 37वीं पुण्य बरसी समारोह विधि विधान के साथ संपंन

चंडीगढ़ 4 जुलाई 2024ः सेक्टर 23 स्थित श्री महावीर मंदिर मुनि सभा (साधू आश्रम)में ब्रह्मलीन श्री सतगुरु देव श्री श्री 108 श्री मुनि गौरवानंद गिरि जी महाराज की 37वीं पुण्य बरसी समारोह के उपलक्ष्य में सैकड़ों साधु संत और महात्माओं का आगमन हुआ। जिनका मुनि सभा के सदस्यगणों ने स्वागत किया और साधु संतो और महात्माओं की सेवा में भी योगदान दिया। इससे पूर्व प्रातः मंदिर परिसर विधि- विधान के साथ भव्य हवन किया गया। पूर्णाहुति के उपरांत समारोह के समापन पर महाआरती की गई।

देश के विभिन्न राज्यों से आये साधु, संत, महात्माओं को सांस्कृतिक सचिव व मुख्य पुजारी पं. दीप भारद्वाज ने तिलक लगा कर अभिनंदन किया। सभा के प्रधान दलीप चन्द गुप्ता उपप्रधान ओ.पी पाहवा, महासचिव एसआर कश्यप, सांस्कृतिक सचिव पं. दीप भारद्वाज, संयुक्त सचिव जगदीश सरीन, कार्यालय सचिव नंदलाल शर्मा तथा कोषाध्यक्ष सुरेन्द्र गुप्ता, ऑडिटर नरेश महाजन, हंस राज नंदवानी, ओम प्रकाश गुप्ता, आदर्श बवेजा उपस्थित थे, जिन्होंने साधु, संत और महात्माओं को दक्षिणा, फल, वस्त्र वितरित किए और साधू-संतो व महात्माओं को करवाया गया जिसके उपरांत श्रद्धालुओं को विशाल भंडारे का प्रसाद वितरित किया गया

संतों, महात्माओं का सम्मान करेंः कथा व्यास अतुल कृष्ण शास्त्री ने श्रद्धालुओं से कहा कि संतों या आध्यात्मिक गुरुओं के उपदेशों का आदर्श अपने जीवन में शामिल करना चाहिए। उनकी शिक्षाओं को अपने व्यवहार में उतारना चाहिए। उनका अनुसरण शांति, प्रेम, करुणा, त्याग, ध्यान और अन्य उत्तम गुणों का अनुसरण करना चाहिए, जो कि संतों में प्रवाहित होते हैं। इस प्रकार, संतों का सत्कार करना हमारे आध्यात्मिक और सामाजिक जीवन में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। उन्होंने कहा कि प्रभु के सत्संग का समय एक आध्यात्मिक अनुभव होता है जिसमें व्यक्ति ईश्वरीय ज्ञान, आत्मानुभूति और सच्ची मानसिक शांति को प्राप्त कर सकता है।
इस अवसर पर कथा व्यास ने एक से बढकर भगवान के मधुर भजनों को सुना कर उपस्थित श्रद्धालुओं को भाव विभोर कर दिया।

सभा के प्रधान श्री दलीप चन्द गुप्ता ने इस अवसर पर कहा कि प्रति वर्ष ब्रह्मलीन श्री सतगुरु देव श्री श्री 108 श्री मुनि गौरवानंद गिरि जी महाराज की पुण्य बरसी समारोह विधि विधान के साथ मनाया जाता है और भविष्य में भी जारी रहेगा।

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