चंडीगढ़ । फोर्टिस अस्पताल मोहाली हृदय रोगों की देखभाल में उत्कृष्टता का एक प्रमुख केंद्र है। यह अस्पताल उन हाई-रिस्क मरीजों को अत्याधुनिक इंटरवेंशनल कार्डियोलॉजी उपचार प्रदान कर रहा है, जिन्हें पहले बायपास सर्जरी या एंजियोप्लास्टी के लिए अनुपयुक्त माना जाता था। 93 वर्षीय एक बुजुर्ग मरीज, जिन्हें जटिल हृदय रोग और शारीरिक कमजोरी थी, का एक बड़ी हृदय धमनी में ब्लॉकेज के लिए एडवांस्ड एंजियोप्लास्टी से सफल इलाज किया गया। एक अन्य मामले में, 70 वर्षीय मधुमेह, हृदय विफलता, गुर्दे की समस्या और तीन हृदय धमनियों में रुकावट से पीड़ित मरीज की भी जटिल और जोखिमपूर्ण एंजियोप्लास्टी की गई। दोनों मरीज सर्जरी के लिए उपयुक्त नहीं थे, लेकिन उन्नत तकनीक और विशेषज्ञ चिकित्सा देखभाल की बदौलत अब पूरी तरह ठीक हैं। फोर्टिस अस्पताल मोहाली के कार्डियोलॉजी विभाग के सीनियर कंसल्टेंट डॉ. सुधांशु बुडाकोटी ने बताया कि 93 वर्षीय मरीज, जिन्हें हाइपरट्रॉफिक कार्डियोमायोपैथी और कोरोनरी आर्टरी डिजीज थी, सीने में दर्द की शिकायत लेकर अस्पताल आए। 2022 में उन्होंने कोरोनरी एंजियोग्राफी करवाई थी और उन्हें सीएबीजी की सलाह दी गई थी, लेकिन उनकी उम्र और कमजोरी को देखते हुए उच्च जोखिम वाली सर्जरी से परहेज किया गया और उन्हें दवाइयों से उपचार दिया गया। सभी प्रकार की दवाइयों और अनुकूलित चिकित्सा उपचार के बावजूद, मरीज को आराम की स्थिति में भी बार-बार सीने में दर्द होता रहा। ऐसे में डॉक्टर ने मरीज और उसके परिवार से संभावित उपचार विकल्पों पर चर्चा की और उन्हें दोबारा एंजियोग्राफी कराने की आवश्यकता के बारे में विस्तार से समझाया।

शुरुआत में मरीज और उनके परिजन संकोच में थे, क्योंकि पहले उन्हें बताया गया था कि न तो सर्जरी संभव है और न ही स्टेंटिंग। लेकिन डॉ. सुधांशु ने उन्हें समझाया कि अब हस्तक्षेप आवश्यक है और ज़रूरत पड़ने पर स्टेंटिंग भी की जा सकती है। इसके बाद मरीज की कोरोनरी एंजियोग्राफी की गई, जिसमें कैल्सीफाइड ट्रिपल वेसल डिज़ीज़ पाई गई। चूंकि कैल्सीफाइड धमनियों में बिना प्लाक मॉडिफिकेशन के स्टेंट डालना संभव नहीं था, इसलिए मरीज और उनके परिवार को उन्नत उपचार विकल्पों के बारे में विस्तार से जानकारी दी गई। इनमें विशेष तकनीकों जैसे रोटाब्लेशन, इंट्रावैस्कुलर लिथोट्रिप्सी और लेज़र शामिल थीं, जिनके माध्यम से धमनी की दीवारों में जमे कठोर कैल्शियम को तोड़कर बाद में स्टेंट डाला जाता है। जब परिवार ने पूरी जानकारी समझ ली और लिखित अनुमति दे दी, तो मरीज की आईवीएल तकनीक से जटिल एंजियोप्लास्टी की गई, जिसमें बैलून के ज़रिए कोमल शॉकवेव्स भेजी जाती हैं, ताकि धमनी की दीवारों में जमे कैल्शियम को दरार देकर मुलायम किया जा सके और रक्त प्रवाह पुनः सुचारु हो सके। रोगी की एक प्रमुख धमनियों में — एलएडी जो हृदय के अगले हिस्से में स्थित सबसे महत्वपूर्ण धमनी होती है और अधिकतम हृदय मांसपेशी को रक्त पहुंचाती है, एंजियोप्लास्टी (पीसीआई) की गई। प्रक्रिया के बाद रोगी की स्थिति स्थिर रही और उसे अगले दिन बिना किसी सीने में दर्द के अस्पताल से छुट्टी दे दी गई। बाद में ओपीडी में फॉलो-अप के दौरान भी कोई शेष लक्षण नहीं पाए गए। डॉ. सुधांशु बुडाकोटी ने आगे बताया कि एक और ऐसा ही मामला हमारे पास आया, जिसमें 70 वर्षीय एक मधुमेह से ग्रसित पुरुष ऐनल फिस्टुला की सर्जरी से पहले कार्डियक क्लियरेंस के लिए आए थे। नियमित जांच के दौरान यह सामने आया कि उन्हें पूर्व में साइलेंट हार्ट अटैक हो चुका था, जिसके कारण उनके हृदय की पंपिंग क्षमता घटकर मात्र 30 प्रतिशत रह गई थी। साथ ही, उनमें क्रॉनिक किडनी डिज़ीज़ (गंभीर गुर्दा रोग) की आशंका भी पाई गई।” उनकी उच्च जोखिम वाली स्वास्थ्य स्थिति को देखते हुए पहले उन्हें कोरोनरी एंजियोग्राफी (सीएजी) के लिए लिया गया, जिसमें तीनों हृदय धमनियों में कैल्सिफिकेशन के साथ व्यापक ब्लॉकेज (डिफ्यूज़ ट्रिपल वेसल डिज़ीज़) पाई गई, और दूर की धमनियों में रक्त प्रवाह भी बहुत कम था, जिससे बायपास सर्जरी करना एक मुश्किल विकल्प बन गया। मरीज और उनके परिवार को उनकी बीमारी की प्रकृति और रीवैस्क्युलराइजेशन (धमनियों को दोबारा खोलने) की उच्च जोखिम वाली प्रक्रिया के बारे में समझाया गया, जिसमें उनकी लो इजेक्शन फ्रैक्शन (कम पंपिंग क्षमता), मधुमेह, गुर्दों की बीमारी और कैल्सीफाइड धमनियों जैसे कई कारक शामिल थे। चूंकि उनकी उम्र में बायपास सर्जरी को लेकर वे सहमत नहीं थे, इसलिए कैल्शियम मॉडिफिकेशन के लिए आईवीएल तकनीक की सहायता से उच्च जोखिम वाली एंजियोप्लास्टी करने का निर्णय लिया गया। डॉ. सुधांशु ने बताया कि मरीज की लेफ्ट मेन और एलएडी (हृदय की एक प्रमुख धमनी) में रुकावट को दूर करने के लिए आईवीएल तकनीक का उपयोग किया गया। लेफ्ट मेन से लेकर एलएडी तक दो स्टेंट लगाए गए ताकि धमनियों को खुला रखा जा सके। प्रक्रिया के दौरान मरीज की गुर्दों की सुरक्षा को ध्यान में रखते हुए बहुत ही कम मात्रा में डाई का उपयोग किया गया। पूरी प्रक्रिया के दौरान मरीज स्थिर रहे और अगले ही दिन उन्हें सुरक्षित रूप से अस्पताल से छुट्टी दे दी गई।