चंडीगढ़। भारत में आँखों की देखभाल केंद्रों के सबसे बड़े नेटवर्क में से एक, डॉ. अग्रवाल्स आई हॉस्पिटल ने छोटे बच्चों और युवाओं में नजदीक की नजर कमजोर होने की बढ़ती समस्या को दूर करने के लिए चंडीगढ़ में एक विशेष मायोपिया क्लिनिक की शुरुआत की है। चंडीगढ़ ऑप्थेलमिक सोसायटी की ओर से इस उद्घाटन समारोह का आयोजन किया गया, जिसमें अस्पताल के डॉक्टरों ने भाग लिया। इसके बाद बच्चों के माता-पिता और शिक्षकों के बीच जागरूकता फैलाने के लिए एक वर्कशॉप भी आयोजित किया गया, जिसमें मायोपिया के शुरुआती लक्षणों, लाइफस्टाइल से जुड़े जोखिम और इससे बचाव के तरीकों पर बात की गई। इस क्लीनिक में बचपन के मायोपिया को ठीक करने के लिए इसके हर पहलू को ध्यान में रखा जाता है, जिसमें शुरुआती पहचान, परामर्श देना, जानकारी देना और समय-समय पर फॉलोअप देखभाल शामिल है। डायग्नोस्टिक की अत्याधुनिक टेक्नोलॉजी वाली इस क्लीनिक में बेहद अनुभवी पीडियाट्रिक ऑप्थेल्मोलॉजिस्ट और ऑप्टोमेट्रिस्ट की एक टीम मौजूद है, जहाँ हर बच्चे की ज़रूरत के हिसाब से इलाज की योजना तैयार की जाती है। इस क्लीनिक में ऐसी समस्या को दूर करने और आगे होने वाली परेशानियों के निदान के लिए आई ड्रॉप्स तथा विशेष चश्मों से लेकर सॉफ्ट कॉन्टैक्ट लेंस एवं ऑर्थोकेरेटोलॉजी (ऑर्थो-के) लेंस जैसे हर तरह के विकल्प उपलब्ध हैं। डॉ. अग्रवाल्स आई हॉस्पिटल की एक इकाई, मिर्चियाज़ लेज़र आई सेंटर के क्लिनिकल सर्विसेज़ प्रमुख, डॉ. राजीव मिर्चिया ने कहा, “चंडीगढ़ में हमारे मायोपिया क्लिनिक की शुरुआत, पंजाब और उत्तर भारत में मायोपिया के बढ़ते बोझ को कम करने की दिशा में उठाया गया एक बड़ा कदम है। बच्चों में मायोपिया की समस्या चिंताजनक रफ़्तार से बढ़ रही है, इसलिए हमारा उद्देश्य ऐसी पूरी देखभाल प्रदान करना है, जो आँखों की रोशनी ठीक करने के साथ-साथ इस स्थिति के बढ़ने की गति को भी धीमा करे। हम इस केंद्र के ज़रिए परिवारों को सही जानकारी, वक़्त पर उपचार और इलाज के नए विकल्पों की सुविधा उपलब्ध कराकर उन्हें सक्षम बनाना चाहते हैं। इस मौके पर सीनियर पीडियाट्रिक ऑप्थेल्मोलॉजिस्ट, डॉ. अनिन सेठी ने कहा, “दुनिया भर में मायोपिया, यानी नजदीक की नजर कमजोर होने के मामले तेजी से बढ़ रहे हैं। चीन, दक्षिण कोरिया, जापान, सिंगापुर और ताइवान जैसे देशों में तो यह पहले से ही महामारी के स्तर पर पहुँच चुका है, जिससे पीड़ित लोगों में से 95% किशोर और युवा हैं। साल 2050 तक, पूरी दुनिया के करीब आधे लोगों को मायोपिया की समस्या हो सकती है। भारत में, साल 1999 में 5 से 15 साल की उम्र के शहरी बच्चों में इसके मामले 4.44% थे, जो साल 2019 में बढ़कर 21.15% हो गया है और साल 2050 तक इसके 48% तक पहुँचने का अनुमान है। पंजाब में, साल 2007 में हुए एक अध्ययन के नतीजे बताते हैं कि, शहरी क्षेत्रों में लगभग 10% स्कूली बच्चे मायोपिया से पीड़ित थे। पढ़ाई के बढ़ते दबाव, बाहरी गतिविधियों में कमी और स्क्रीन पर अधिक समय बिताने की वजह से उत्तर भारत में इस बीमारी के मामले अधिक देखने को मिल रहे हैं।”