पंचकूला । पारस अस्पताल के पेट रोग विभाग के वरिष्ठ सलाहकार डा. करण मिधा ने कहा कि दुनिया भर में हुए शोध के अनुसार अग्नाशय कैंसर सबसे बड़ी समस्या बनी हुई है। नवंबर महीने को अग्नाशय कैंसर जागरूकता माह के रूप में मनाने के लिए आयोजित एक कार्यक्रम के दौरान डा. मिधा ने कहा कि इस कैंसर के प्रमुख लक्षणों को जल्दी न देख पाने के कारण अक्सर इसका पता चलने में देरी होती है। जिससे जल्द स्थिति स्पष्ट करने में दिक्कत आ रही है। उन्होंने समय रहते इसकी पहचान करने के महत्व पर जोर दिया और कहा कि इसकी सूक्ष्म प्रकृति के कारण इसके प्रति गंभीर होना जरूरी है। उन्होंने कहा कि पेट में हल्की परेशानी या अचानक वजन बढ़ना इसके प्राथमिक लक्षण हैं। डा. मिधा ने कहा कि फिलहाल इसका सबसे आसान इलाज सर्जरी है। उन्होंने बताया कि ग्लोबोकान 2020 के अनुसार, भारत में अग्नाशय कैंसर के कुल वैश्विक मामलों में लगभग 7 प्रतिशत मामले दर्ज किए गए। उन्होंने कहा कि अग्न्याशय एक ग्रंथि है जो पाचन प्रक्रिया में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है, जो रक्त में शर्करा के नियमन के लिए जिम्मेदार है। उन्होंने कहा कि इस बीमारी में एक्सोक्राइन कैंसर अधिक आम है, जो पाचन कोशिकाओं से विकसित होता है। इसी तरह, दूसरा अंतःस्रावी कैंसर में शामिल है, जो मुख्य रूप से हार्मोन-उत्पादक कोशिकाओं में विकसित होता है, क्योंकि इसके लक्षण अस्पष्ट हैं, यह पीलिया, पीठ दर्द, अस्पष्टीकृत वजन घटाने, भूख न लगना जैसी छोटी स्वास्थ्य समस्याएं पैदा कर सकता है। उन्होंने कहा कि मतली और मधुमेह की नई शुरुआत भी घातक साबित हो सकती है, क्योंकि यह बीमारी पेट में गहरी होती है, इसलिए इसके शुरुआती चरण का पता लगाना मुश्किल होता है। बढ़ती उम्र, धूम्रपान, मोटापा, मधुमेह, पुरानी अग्नाशयशोथ, और अग्नाशय या अन्य कैंसर का पारिवारिक इतिहास सहित इन जोखिम कारकों के बारे में जागरूकता जोखिम वाले व्यक्तियों की जांच और निगरानी में महत्वपूर्ण हो सकती है।उन्होंने कहा कि इस तरह की स्थिति में कीमोथेरेपी, रेडियोथेरेपी, टारगेटेड थेरेपी और इम्यूनोथेरेपी के जरिए काफी सफलता हासिल की जा सकती है।