चंडीगढ़ । कानूनी पेशे में महिलाओं की निर्णायक भागीदारी और नेतृत्व को लेकर एक सशक्त संदेश सामने आया, जब प्रमुख न्यायाधीशों, शिक्षाविदों और अधिवक्ताओं ने सभी वर्गों को साथ लेकर चलने वाली विधिक व्यवस्था की आवश्यकता पर बल दिया। “अपरंपरागत वकालत और महिलाओं के लिए आगे का रास्ता” विषय पर यह विचारगोष्ठी इंडियन वीमेन इन कमर्शियल डिस्प्यूट रिजॉल्यूशन द्वारा आयोजित की गई। चंडीगढ़ के लॉ भवन में आयोजित इस पैनल चर्चा में न्यायमूर्ति मीनाक्षी आई. मेहता, न्यायमूर्ति विनोद एस. भारद्वाज, न्यायमूर्ति पंकज जैन (पंजाब एवं हरियाणा उच्च न्यायालय), डॉ. श्रुति बेदी और अधिवक्ता रमीज़ा हकीम ने भाग लिया। न्यायमूर्ति मीनाक्षी मेहता ने सिरसा में पहली महिला न्यायिक अधिकारी के रूप में अपने अनुभव साझा करते हुए कहा कि पहले लोग यह देखने आते थे कि महिला जज कैसी होती है। लेकिन आज वही दृश्य आत्मविश्वास में बदल गया है। यह बदलाव नेतृत्व की ओर संकेत करता है।उन्होंने युवाओं को पारंपरिक सीमाओं से आगे जाकर नई विधिक भूमिकाओं को अपनाने के लिए प्रेरित किया। न्यायमूर्ति विनोद एस. भारद्वाज ने कहा कि हमें एक ऐसी प्रणाली चाहिए जो महिलाओं को अपवाद नहीं, अवसर के रूप में देखे।

यह बदलाव सिर्फ महिलाओं की ज़िम्मेदारी नहीं बल्कि पुरुषों को भी इसमें समान भागीदारी निभानी होगी। न्यायमूर्ति पंकज जैन ने कहा कि हमें ‘महिला वकील’ या ‘महिला जज’ जैसे लेबल हटाकर सिर्फ ‘अच्छा वकील’ कहना सीखना होगा। योग्यता का कोई विशेषण नहीं होता। डॉ. श्रुति बेदी ने कहा कि जब तक विधि शिक्षा संस्थानों में लैंगिक तटस्थ मंच नहीं बनते, तब तक कोर्टरूम में बराबरी की बात अधूरी रहेगी। अधिवक्ता रमीज़ा हकीम ने कहा कि कई बार लगा कि मैं पीछे हट जाऊं, लेकिन मैंने संघर्ष को चुना। यही संघर्ष आज मेरी ताकत है। उनके अनुभवों पर उपस्थित जनों ने तालियों से स्वागत किया। सत्र के अंत में एक खुला प्रश्नोत्तर दौर भी आयोजित हुआ, जिसमें युवा वकीलों और विधि के विद्यार्थियों ने विचारोत्तेजक प्रश्न किए। सह-संस्थापक डॉ. दीपा सिंह और सुश्री सोनिया मदान ने कहा कि हम सिर्फ मंच नहीं बना रहे, हम नेतृत्व की ओर बढ़ती हुई पीढ़ी को समर्थन और दिशा दे रहे हैं ।