चंडीगढ़। देश के छोटे शहरों में उच्च शिक्षा हासिल करने वाले बड़ी संख्या में छात्र आज भी करियर को लेकर असमंजस में हैं। डिग्री पूरी करने के बाद भी उन्हें यह स्पष्ट नहीं हो पाता कि आगे किस दिशा में बढ़ें। करियर से जुड़े विकल्पों की जानकारी का अभाव, मेंटरशिप की कमी और आर्थिक सीमाएं इस समस्या को और गहरा कर रही हैं। खासतौर पर असंगठित और वंचित पृष्ठभूमि से आने वाले छात्रों के सामने यह चुनौती ज्यादा बड़ी है। इसी को देखते हुए टियर-2, टियर-3 और टियर-4 शहरों में अब व्यवस्थित करियर गाइडेंस और स्किल डेवलपमेंट की मांग तेजी से बढ़ रही है। कई संस्थाएं ऐसे कार्यक्रम शुरू कर रही हैं, जिनमें करियर काउंसलिंग, प्रतियोगी परीक्षाओं की तैयारी और कौशल आधारित प्रशिक्षण को एक साथ जोड़ा जा रहा है। इनका उद्देश्य पढ़ाई और रोजगार के बीच की दूरी को कम करना है, ताकि छात्र अपनी रुचि और क्षमता के अनुसार सही करियर चुन सकें। छोटे शहरों में शुरू की गई स्कॉलरशिप योजनाएं भी छात्रों के लिए राहत बनकर सामने आ रही हैं। इन योजनाओं से आर्थिक दबाव कम हो रहा है और मेधावी छात्रों को बेहतर मार्गदर्शन और प्रशिक्षण मिल पा रहा है। पंजाब और हिमाचल प्रदेश जैसे राज्यों में सरकारी संस्थाओं के सहयोग से चल रही पहलें असंगठित क्षेत्र से जुड़े छात्रों को संगठित और स्थायी करियर की ओर ले जाने में मदद कर रही हैं। क्रैक एकेडमी के फाउंडर और सीईओ नीरज कंसल का कहना है कि छोटे शहरों के छात्रों में काबिलियत और आगे बढ़ने की इच्छा होती है, लेकिन सही दिशा और जानकारी की कमी रहती है। उनका कहना है कि अगर काउंसलिंग, स्किल डेवलपमेंट और आर्थिक सहयोग समय पर मिले, तो ये छात्र आत्मविश्वास के साथ बेहतर करियर बना सकते हैं। विशेषज्ञों के मुताबिक, आर्थिक सहायता के साथ-साथ नियमित वर्कशॉप, मेंटरशिप सेशन और आसान लर्निंग मॉडल पहली पीढ़ी के छात्रों के लिए बेहद उपयोगी साबित हो रहे हैं। इससे उन्हें नए करियर विकल्पों और बदलती इंडस्ट्री की जरूरतों को समझने का मौका मिल रहा है। जैसे-जैसे ऐसी पहलें आगे बढ़ रही हैं, छोटे शहरों के छात्रों के लिए करियर की तस्वीर साफ होती जा रही है। माना जा रहा है कि ये प्रयास न सिर्फ छात्रों का भ्रम दूर करेंगे, बल्कि उन्हें अपने सपनों को हकीकत में बदलने का रास्ता भी दिखाएंगे।

